शृणु साधक तव जीवनपथ प्रेरकवाणीम्
संस्कृतगीतम् Lyrics
शृणु साधक तव जीवनपथ प्रेरकवाणीम्
वद शिक्षक जनपाठशसुकरां सुरवाणीम् पठ छात्रक नवनिर्मित सुपरिष्कृत पाठान् लिख नूतनविषयेषु हि बहु संस्कृत लेखान् मा क्ष्रावय निजशंसनपरदूषणवाक्यम् ननु गापय कृतिबोधकमतिप्रेरकगीतम् त्यज लेखक! भयमिक्ष्रितगतिरोधकभावम् हृदि धारय नवसर्जनबहुलेखनध्येयम् सहगन्तुक सहवाचकसहवेदकचित्तम् अभिमन्त्रय किल वैदिक समुपासितत्तवम् सरलात्मक नियमाहत सुरसंस्कृत भाषाम् कुरू लेखक निजलेखन कृति साधन भूताम् पठनेन हि पदसड्ग्रह मभिवर्धय नित्यम् मननेन च पदशोधनमवधारय सर्वम् समकालिकरचनासु तु सुतरां चिनु गद् यम् लिख संस्कृत मनुवादक नितरां परिशुद्धम् धनकामनपद लालसरहितं कुरु कार्यम् अभिप्रेरण गुणपूजनसहितं कुरृ काव्यम् चल सन्ततमनिशं पथि नियतं कुरृ सेवाम् लिख लेखक पठ पाठक सततं स्मर ध्येयम्
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